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एक ऐसे दलित, पिछड़ों, अतिपिछड़ों के नेता जो हुए थे ,Guinness book of world में शामिल।
जी हां हम बात कर रहे हैं आज बिहार के उस दलित नेता की जो बिहार की राजनीति की एक मिसाल थे दलित पिछड़ों के मसीहा हुआ करते थे जिनके बिना बिहार की राजनीति की एक पीढ़ी अधूरी सी लगती है। वही नेता जो बौद्ध धर्म अपना रहे दलितों के आरक्षण के लिए सरकार को मजबूर किया, जो कभी वाजपेई जी की सरकार 1 वोट से गिरा दिये
जो कभी मुस्लिम मुख्यमंत्री के नाम पर राष्ट्रपति शासन लगवा दिए जी हां वह दलित नेता कोई और नहीं हम बात कर रहे हैं आज रामविलास पासवान जी की।
आइए जानते हैं उनके शुरुआती जीवन के बारे में:-
रामविलास पासवान जी का जन्म 5 जुलाई 1946 को बिहार के खगड़िया जिले के शहरबनी गांव के एक दलित परिवार में था। उनके पिता जामुन पासवान और उनकी माता सियादेवी थी। पासवान ने कोशी कॉलेज खगड़िया से लॉ की पढ़ाई तथा m.a. की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से पूरा किया फिर 1969 में उन्हें बिहार पुलिस में D.S.P के पद के लिए चुना गया था।
1969 में ही पासवान जी को विधानसभा के लिए संयुक्ता समाजसेवी पार्टी (United Socialist party)ने अलौली विधानसभा से उम्मीदवार बनाया जो कि एक आरक्षित सीट था और उन्होंने यहीं से खाकी के बदले खादी को चुना और वहां से जीत हासिल कर विधानसभा पहुंचे पर 1972 में अलौली से उन्हें हार का सामना करना पड़ा फिर 1974 में वे राज नारायण और जयप्रकाश नारायण पासवान के अनुयायी के रूप में लोक दल के महासचिव बने वह व्यक्तित्व रूप से राजनारायण, कर्पूरी ठाकुर, सत्येंद्र नारायण सिन्हा जैसे आपातकाल विरोधी नेताओं के करीबी थे।
आइए जानते हैं हम उनकी विशेष राजनीति के बारे में:-
1975 में जब देश में आपातकालीन की घोषणा की गई थी तब पासवान को गिरफ्तार किया गया और पूरे 2 साल वे जेल में रहे फिर 1977 में उनकी रिहाई हुई और वे जनता पार्टी के सदस्य बने और हाजीपुर से 4,24,000 रिकॉर्ड मतों से पहली बार सांसद चुनाव जीता जो भारत में आम चुनाव के लिए सर्वकालिक रिकॉर्ड में से एक रहा जब 1979 में जनता पार्टी विभाजित हुई तो वह चरण सिंह के गुट में शामिल हो गए पुनः पासवान को 1980 में हाजीपुर निर्वाचन क्षेत्र से जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में लोकसभा के लिए फिर से चुना गया था फिर पासवान ने 1983 में दलित सेना का गठन किया दलित मुक्ति और कल्याण के लिए एक संगठन की स्थापना की बाद में दलित सेना की अगुवाई इनके भाई रामचंद्र पासवान ने किया बाद में इसका नाम बदलकर अनुसूचित जाति सेना कर दिया गया। फिर 1984 के हाजीपुर लोकसभा चुनाव को पासवान ने गवा दिया।
पासवान को 1989 में 9वीं लोकसभा के लिए चुना गया थाऔर उन्हें विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार में केंद्रीय श्रम और कल्याण मंत्री नियुक्त किया गया फिर 1991 में रोसरा से लोकसभा के लिए चुने गये थे।1996 में फिर से हाजीपुर से जीत हासिल की और यही वह वर्षा जब पासवान पहली बार रेल मंत्री (1996-1998) बने थे। फिर अक्टूबर 1999 से सितंबर 2001 तक केंद्रीय संचार मंत्री थे।
इसी बीच 2000 में पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी का गठन किया और उन्होंने मंत्री के रूप में इस्तीफा दे दिया और भाजपा के साथ मतभेद विकसित करने के बाद 2002 में सत्तारूढ़ N.D.A. को छोड़ दिया। 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद पासवान U.P.A की सरकार में शामिल हो गए और उन्हें रसायन और उर्वरक मंत्रालय में केंद्रीय मंत्री बनाया गया।
आइए जानते हैं किस प्रकार से रामविलास पासवान जी ने बिहार में राष्ट्रपति शासन लागू करवा दिया था:-
फरवरी 2005 के बिहार राज्य चुनावों में पासवान की पार्टी लोजपा ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ा यही वह साल था जब परिणाम यह था कि विशेष पक्ष या गठबंधन स्वयं सरकार नहीं बना सकता था हालांकि पासवान ने लालू यादव का समर्थन से इंकार कर दिया। यह गतिरोध तब टूटा जब नीतीश कुमार लोजपा के 12 सदस्यों को अपनी ओर खींचने में सफल रहा। लोजपा समर्थकों द्वारा समर्थित सरकार के गठन को रोकने के लिए बिहार के राज्यपाल बूटा सिंह ने विधायिका को भंग कर दिया और बिहार को राष्ट्रपति शासन के तहत रखते हुए नए चुनाव का आव्हान किया नवंबर 2005 के राज्य चुनाव में पासवान का तीसरा गठबंधन पूरी तरह तबाह हो। गया लालू यादव कांग्रेस गठबंधन अल्पसंख्यक हो गया औरN.D.A नई सरकार बनाई ।
पासवान ने केंद्र में पांच प्रधानमंत्रियों के साथ किया कार्य और रहे मंत्री:-
पासवान ने ही घोषणा किया था कि बिहार राज्य चुनाव का केंद्र सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा पासवान ने पांच प्रधानमंत्रियों के तहत केंद्रीय मंत्री के रूप में कार्य किया वह सभी राष्ट्रीय गठबंधन(The United front, National democratic alliance and United progressiv alliance) का हिस्सा थे। जिन्होंने 1996 से 2015 तक भारत सरकार का गठन किया।
पासवान ने जब 33 साल में पहली बार गवाया हाजीपुर का चुनाव:-
2009 के भारतीय आम चुनाव के लिए पासवान ने लालू प्रसाद यादव और उनके राष्ट्रीय जनता दल के साथ गठबंधन किया जबकि उनके तत्कालीन गठबंधन साथी और यूपीए के नेता ने गठबंधन से कांग्रेस को डंप किया। यह जोड़ी बाद में मुलायम सिंह के पार्टी समाजवादी पार्टी में शामिल हो गई और उन्हें चौथा मोर्चा घोषित कर दिया। पासवान ने हाजीपुर में 33 साल में पहली बार बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री रामसुंदर दास के चुनाव गवाएं । उनकी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी 15वीं लोकसभा में कोई सीट नहीं जीत पाई जबकि उनके गठबंधन साथी यादव और उनकी पार्टी भी अच्छा प्रदर्शन करने में नाकाम रही और 4 सीटों तक कम हो गई।
पासवान को 2014 के आम चुनाव के बाद 16वीं लोक सभा के सदस्य के रूप में चुना गया था जब उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन किया था जबकि उनके बेटे चिराग पासवान भी बिहार के जमुई निर्वाचन क्षेत्र से जीते थे।
पासवान को फिर से मई 2014 में उपभोक्ता मामले में खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय का प्रभार दिया गया जो 2019 में दूसरे मोदी मंत्रालय में जारी रहा उन्हें 2019 में भाजपा की मदद से राज्यसभा के लिए चुना गया था हालांकि उनकी पार्टी की राज्य में विधानसभा में केवल दो विधायक थे।
आइए जानते हैं उनके निजी जीवन के बारे में:-
पासवान ने 1980 में राजकुमारी देवी से शादी की 2014 में उन्होंने खुलासा किया उन्होंने 1981 में तलाक दे दिया था क्योंकि उनके लोकसभा के नामांकन पत्रों को चुनौती दी गई थी पासवान की पहली पत्नी से दो बेटी उषा और आशा है 1983 में उन्होंने एयर होस्टेस रीना शर्मा शादी की रीना से एक बेटा एक बेटी है।
पासवान को अक्सर dynast कहा जाता था वह अपने भाइयों पशुपतिनाथ पारस और रामचंद्र पासवान को राजनीति में लेकर आए थे 2019 में जो लोजपा ने 6 सीटें जीती उनमें से तीन उसके परिवार के थे-बेटा चिराग और भाई पशुपतिनाथ पारस और रामचंद्र पासवान। रामचंद्र पासवान की मृत्यु के पश्चात उसके बेटे प्रिंस ने जिम्मेदारी संभाली और सफल रहा।
आइए जानते हैं उनका निधन कब और कैसे हुआ:-
8 अक्टूबर 2020 को राजनीतिक का वह काला दिन आया, जब रामविलास पासवान जी का निधन हो गया इसकी पुष्टि उनके पुत्र चिराग पासवान ने की ।पासवान की दिल की सर्जरी हुई थी और वे अपनी मौत से कुछ हफ्ते पहले से अस्पताल में भर्ती थे। पासवान का 10 अक्टूबर 2020 को पटना में अंतिम संस्कार किया गया था उनके शरीर को अंतिम संस्कार के लिए श्री कृष्ण पुरी में उनके आवास से लगभग 3 किलोमीटर दूर दीघा इलाके में जनार्दन घाट लाया गया था और वहां उनकी अंतिम संस्कार की गई। और इसी तरह एक महान राजनीतिज्ञ का अंत हो गया। लेकिन वे अपनी स्वच्छ राजनीति के कारण आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है।
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